समाज में हत्याएँ क्यों होती हैं?
हत्या एक जघन्य अपराध है। यह अपराध दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। खेत-खलियानों में सघन पेड़-पौधों के मध्य कुआँ-बावड़ी में, सुनसान स्थानों पर मारे हुए लोगों के शव मिलते हैं। हत्यारे बड़े शातिर होते हैं। हत्या को छिपाने के लिए जिसकी हत्या की जाती है, उसकी शक्ल बिगाड़ देते हैं। कोई जलाकर चेहरा बिगाड़ देते हैं तो कोई तेजाब छिड़ककर विकृत रूप बना देते हैं। कुछ मारकर पेड़ पर रस्सी लटका कर फाँसी का फंदा लगा देते हैं। कई हत्यारे बड़े निर्भय होते हैं। भरे बाजार में गोली मार देते हैं। अतिक्रोधित हत्यारा मारने वाले के बदन पर छुर्रे मार-मार कर लहूलुहान कर देते हैं। आज का इंसान तो हिंसक पशु से भी अधिक खूखार बन गया है।
हत्यारे बड़े चतुर-चालाक भी होते हैं। किसी से गहरी मित्रता कर शराब में विष मिलाकर किसी को मौत के घाट उतार देते हैं। विशेष रूप से हत्याएँ दो कारणों से होती हैं। हत्यारे सुनियोजित ढंग से योजना बनाकर हत्या करते हैं। दूसरा कारण क्रोध और आवेश है। हत्या के बदले में भी हत्या की जाती है। जब किसी में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठती है तो वह व्यक्ति आगे-पीछे नहीं देखता है। हत्या का बदला हत्या से ही लेता है। चाहे उनको जीवन भर जेल में रहना पड़े।
हत्याएँ क्यों होती हैं? :
किसी का खून सवार हो जाता है तो वह व्यक्ति विवेक खो देता है। कुछ घटनाएँ ऐसी हो जाती हैं, जिससे किसी व्यक्ति के आन, बान, शान पर प्रहार होता है। जैसे किसी व्यक्ति की लड़की निम्न वर्ग से शादी कर लेती है तो कुछ माँ-बाप इसको प्रतिष्ठा पर आघात मानते हैं। वे पुत्री की हत्या तक कर देते हैं, इस अपराध से उनको जीवन भर जेल जाना पड़ता है।
प्रेम-प्रसंगों में होने वाली हत्याएँ :
आजकल मोबाइल एक ऐसा साधन है, जिससे जानकार और अनजान से लड़कियाँ सम्बन्ध बना लेती हैं। वर्तमान में मर्यादाएं टूट चुकी हैं। कोई नारी पर पुरुष से प्रेम करने लग जाती है, वह इतनी खूँखार हो जाती है कि अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति का खून कर देती है। आजकल के युवक और युवतियाँ बेशर्म और आक्रामक हो गए हैं कि उनके प्रेम प्रसंग में जो व्यक्ति बाधा डालता है, उसकी हत्या कर देते हैं। शबनम ने तो अपने प्रेमी के साथ मिलकर सात व्यक्तियों का खून कर दिया था। कुछ बिगड़ेल युवक ऐसे होते हैं किसी सुन्दर लड़की पर आशिक हो जाते हैं और जबरन शादी करना चाहते हैं। लड़की इन्कार हो जाती है तो प्रेमी हत्या कर देता है।
चोर, डाकू, गुण्डे, बदमाशों द्वारा हत्याएँ :
कुछ बदमाश, गुण्डे अपना प्रभाव जमाने के लिए एक-दो खून करके समाज में भय पैदा कर देते हैं। कुछ लोग अपनी गैंग बनाकर डाकू बन जाते हैं। डाकू लोग निडर और निर्भय होते हैं। किसी भी सम्पन्न व्यक्ति के घर डाका डालकर धन लूट लेते हैं। प्रतिवाद करने पर हत्या कर देते हैं। चोर थोड़ा डरपोक होता है, जागने पर भाग जाता है। परन्तु जब चोर घिर जाते हैं तो अपना बचाव करने के लिए पकड़ने वाले व्यक्ति की हत्या कर देते हैं।
सुपारी प्राप्त करने वाले लोग :
इस देश में कुछ लोग ऐसे भी उत्पन्न हो गए हैं, जो लाखों का ठेका लेकर हत्या कर देते हैं। पता नहीं ईश्वर ने उनको हत्याएँ करने के लिए ही जन्म दिया है। जब किसी नेता का वर्चस्व बढ़ जाता है, तो प्रतिद्वन्दी नेता उसकी हत्या करा देते हैं। ये हत्याएं सुपारी वाले लोग कर देते हैं।
लोभ, लालच, धन प्राप्ति के लिए होने वाली हत्याएँ :
आजकल लोभ लालच इतना बढ़ गया है कि जमीन पर कब्जा करने या धन प्राप्ति के लिए अपने निकटतम् घनिष्ठ व्यक्ति की हत्या भी कर देते हैं, जबकि अधिकतर लोग पकड़ में आ जाते हैं और कारावास भोगते हैं।
शराब माफिया, खनन और भूमाफिया :
देश में शराब खोरी बहुत बढ़ गई। जिस व्यक्ति की शराब की दुकान खूब चलती है, उसकी बिक्री ठप करने के लिए दूसरे लोग विघ्न डालते हैं। ऐसे लोगों में आपसी भयंकर झगड़ा होता है। आपस में खून तक कर देते हैं। बजरी माफिया लोगों का गैंग भी होता है। वे नाजायज रूप से खनन करते हैं। रोकने पर भी नहीं रूकते हैं। पुलिस का भी सामना कर लेते हैं। ऐसे लोग खनन रोकने वाले पर ट्रक तक चढ़ा देते हैं। धन प्राप्ति के लिए या तो खुद मर जाते हैं या दूसरों को मार देते हैं।
दरिन्दों द्वारा की जाने वाली हत्याएँ :
गत दस-बीस वर्षों से देश में दुष्कर्म के केस प्रतिदिन आते ही रहते हैं। दुष्कर्मी लोग मासूम बच्चों, लड़कियों के साथ दुष्कर्म करके उनको मार देते हैं, जिससे लड़कियाँ भेद न दे सके। कुछ लोग तो बोरी में शव को बन्दकर कूड़े के ढेर में डाल देते हैं। हत्यारों को फाँसी की सजाएं सुनाई जाती हैं, फिर भी दुष्कर्म का दौर नहीं थम रहा है।
गृह कलह, वैर भाव के कारण :
घरों में प्रत्येक व्यक्ति का अहंकार बढ़ रहा है। भाई का भाई शत्रु बना हुआ है। इसी प्रकार पड़ोसी भी प्रेम भाव नहीं रखते हैं। अच्छे पड़ोसी बहुत कम हैं। घर में या बाहर के लोग घात लगाते रहते हैं। अवसर अनुकूल होने पर हत्या भी कर देते हैं।
हत्याओं का दौर कैसे रूके :
जब तक हमारे देश का दण्ड विधान कठोर नहीं होगा, हत्याएँ नहीं रूकेंगी। देश में करीब 500 लोगों को फाँसी की सजा सुनाई गई, लेकिन सबको फाँसी नहीं लगती है। जब तीन-तीन न्यायालय में तर्क-वितर्क साक्ष्य के आधार पर मृत्यु दण्ड सुना चुके हैं, इसके बाद दया याचिका किस बात की होती है। ऐसी उदारवादी नीति किस काम की? क्या जिसकी हत्या हुई है, उसके जीवन का कोई मूल्य नहीं है? खाड़ी देशों में कठोर दण्ड व्यवस्था है इसलिए अपराध बहुत कम होते हैं। चोर, डाकू, लुटेरे, बदमाश, गुण्डे घरों से ही तो पैदा होते हैं, ऊपर से तो पड़ते नहीं है। हम दोषी हैं हमारे लड़के-लड़कियों पर हमने गहराई से ध्यान नहीं दिया। बेहद छूट दी वे कुसंगति में पड़कर बिगड़ गए। इकलौते पुत्रों को हमने सिर पर चढ़ाया। वे मनमानी करने लगे। नेताओं ने देश व्यवस्था अपने हाथों में ले ली। अपराधी पकड़ा जाता है, नेताजी के फोन से छूट जाता है। अफसरों के अधिकार छिन गए।
-- छाजूलाल जांगिड (से.नि. व्याख्याता) , नवलगढ़