साख, सम्बन्धों में बिचौलिये (मध्यस्थ) की भूमिका
बिचौलिये की अवधारणा : मध्यस्थ या बिचौलिया वह व्यक्ति होता है जो दो पक्षों में मेल-मिलाप कराता है। विवादों, झगड़ों का निपटारा वह अपनी प्रज्ञा शक्ति से करता है। घर, परिवार, जाति, समाज में भी अविश्वास, मन-मुटाव, मतभेद होते रहते हैं। उनका निराकरण शीघ्र ही किया जाना चाहिए। यदि इनका समाधान लम्बे समय तक नहीं होता है तो वह प्रकरण बैर का रूप धारण कर लेता है। जब दो धर्मों में दंगा, फसाद, आघात हो जाता है तो वह साम्प्रदायिक रूप ले लेता है। इन सारे विवादों में बिचौलिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जब दो राष्ट्रों में झगड़ा-विवाद हो जाता है, तो तीसरा राष्ट्र मध्यस्थ होता है। व्यवसाय में लेन-देन, क्रय-विक्रय भी बिचौलियों के माध्यम से सौदे तय होते हैं, जिसको एजेन्ट के नाम से सम्बोधित करते हैं।
साख, सम्बन्धों में बिचौलिये की आवश्यकता : साख, सम्बन्ध दो पक्षों में होते हैं। प्रथम वर पक्ष और दूसरा कन्या पक्ष होता है। प्रत्येक वर पक्ष के माता-पिता संरक्षक के मानस में कई इच्छाए-अपेक्षाएं होती है. वह दहेज में जो कुछ लेना चाहता है वह स्पष्ट नहीं कह सकता। बल्कि गोपनीय रूप से जानना चाहता है कि उसे कन्या पक्ष से क्या मिलेगा? वह लेन-देन की बात सीधी कन्या पक्ष से नहीं कर सकता है। यदि अपनी मांग रखता है तो उस बात का प्रचार-प्रसार समाज में हो जाता है, तो उसकी समाज में बदनामी हो जाती है। इसलिए वर पक्ष उस व्यक्ति की तलाश में होता है, जो उसके मन की बात जान सके। वह बिचौलिये को ही अपनी बात कहना चाहता है। बिचौलिया उसका विश्वास पात्र होता है। वही व्यक्ति कन्या पक्ष का भी विश्वसनीय होता है। कन्या पक्ष वाला व्यक्ति उस पर प्रभाव दबाव डालता है कि यह सम्बन्ध आप करवा दो।
वर पक्ष बिचौलिए के माध्मय से कन्या का वर्ण, कद, रूप सौंदर्य, चाल-चलन, शिक्षा-दीक्षा, पारिवारिक सम्पन्नता, परिवार के व्यवहार प्रतिष्ठा इत्यादि की जानकारी लेना चाहता है। साथ ही यह भी आंकड़ा ले लेता है, वह दहेज देने में कितना सक्षम है। यदि अनुकूल स्थिति नहीं होती है तो वर के पिता द्वारा कोई भी बहाना बनाकर सम्बन्ध टालने की संभावना अधिक रहती है।
इसी प्रकार कन्या पक्ष भी वर पक्ष के पारिवारिक परिवेश, परिवार के लोगों का स्वभाव व व्यवहार, व्यवसाय वर की शिक्षा-दीक्षा, रूपरंग, कद, चाल-चलन सभी की जानकारी मध्यस्थ के माध्यम से लेता है। कन्या के पिता को यह भय तो रहता है कि कहीं मेरी बेटी को कोई दुःख तो नहीं झेलना पड़ेगा। इन सारी बातों की जिम्मेदारी मध्यस्थ लेता है। वह दो पक्षों की दिलजमी करता है। आजादी के पूर्व इस प्रकार का कार्य करने वाले लोग चौधरी कहलाते थे। परन्तु आजकल चौधरी नहीं रहे। आज युग बदल गया। कोई किसी को नहीं मानता है। इसीलिए साख-सम्बन्ध के परपंच में कोई नहीं पड़ना चाहता है। यदि कोई सम्बन्ध करा देते हैं, तो बिना मतलब का बिचौलिए को उपालम्भ देते हैं। फिर भी सम्बन्ध कराने में कोई न कोई मध्यस्थ होना चाहिए। चाहे वह अपना सम्बन्धी हो। बिना जानकारी के सम्बन्ध करना उचित नहीं होता है।
बिचौलिए का दायित्व : वर और कन्या प्रणय सूत्र बन्धन एक पवित्र कार्य है, जो सुखद और प्रेमपूर्ण जीवन पर्यन्त चलता है। यह सम्बन्ध सात पीढ़ियों का हो जाता है। इसलिए मध्यस्थ का यह दायित्व है कि वर और कन्या का उचित और सराहनीय सम्बन्ध करावें। उस युगल को देखकर सभी प्रशंसा करें। उसको दोनों पक्षों की विशद् जानकारी लेकर ही सम्बन्ध कराना चाहिए। जहाँ लोभ-लालच देकर वर या कन्या पक्ष वाले सम्बन्ध कराते है वे सम्बन्ध असफल हो जाते हैं। आजकल के बिचौलिए ऐसे भी हो गए हैं, जो गलत चाल-चलन वाले लड़के या कन्या तथा उनके अंग भंग, रोग, दोष को छिपाकर सम्बन्ध करा देते हैं। बाद में दोषों का प्रकटीकरण होता है और बात बिगड़ जाती है।
इसी प्रकार वर शराब का पियक्कड़ है और किसी प्रकार का रोग दोष है तथा अन्य लड़की से सम्बन्ध रखता, कम पढ़ा लिखा है ऐसे लड़कों की बात छिपाकर मध्यस्थ सम्बन्ध करा देता है तो वधु कुण्ठाओं में जीवन व्यतीत करती है। जब संकट पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तो वधु या तो आत्महत्या करती है या सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। अत: बिचौलिये का दायित्व है कि वह समर्पण भाव से सम्बन्ध करावें। दोनों पक्षों के हित को सर्वोपरि रखे। मिथ्या बात और गलत आचरण घातक होता है। अनमेल विवाहों में जो वधुएं संकट झेलती हैं, उसका पाप/दोष मध्यस्थ को भी लगता है।
आजकल तो मध्यस्थों का स्वरूप ही बदल गया, वे कमीशन एजेण्ट बन गए। बेचारे दूर-दराज के क्षेत्रों में बसने वाले प्रवासी लोग इनके माध्यम से शादी कराते हैं। वे शादी के बाद वर और कन्या पक्ष दोनों से कमीशन लेते हैं। यह बिचौलियों का कितना विकृत रूप प्रकट हो गया। किसी असहाय व्यक्ति की कन्या का विवाह कराना एक पुनीत कार्य है। कन्या सुखी रहती है तो उसी आत्मा से आशीर्वाद ही निकलता है। माता-पिता भी सुख का अनुभव करते हैं। हमारी स्वस्थ परम्पराओं का सत्कार करना और सम्बन्धों की अमरता बनाए रखना प्रत्येक भारतीय नागरिक का धर्म है।
-- छाजूलाल जांगिड, नवलगढ़