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वेद : सर्वज्ञान स्त्रोत्

वेद का मतलब ज्ञान है और सभी ज्ञान का स्त्रोत् ब्रह्म है। वेदों का प्राकट्य भगवान ब्रह्माजी के मुख से हुआ और ब्रह्माजी भगवान् विष्णु के नाभि-कमल से उत्पन्न हुए। हमारे ऋषियों ने ध्यान के द्वारा ब्रह्मा से ध्वनि के रूप में इस ज्ञान की प्राप्ति की। ऋषियों ने इस ज्ञान को अपने शिष्यों को दिया। इस तरह यह अनंत कालीय ईश्वरीय ज्ञान ऋषियों ने महसूस किया, यही वेद है। ऋषियों ने यह ईश्वरीय ज्ञान जैसे महसूस किया, उन्होंने उसी ज्ञान को अपनी भाषा में शिष्यों को प्रदान किया। इसलिए आदिकाल से वेदों को श्रुति कहा गया। जिन ऋषियों ने मंत्रों को समझा उन्हें मंत्र-द्रष्टा कहा गया। अत: ऋषियों द्वारा अनुभव करके वास्तविक सत्य को जानना ही वेद है।
वेद किसी एक ऋषि का अनुभव नहीं है, बल्कि असंख्य ऋषियों के अनुभव द्वारा वास्तविक सत्य की खोज की गई। क्योंकि हमने इस अनन्त सत्य का अनुभव नहीं किया, इसलिए हमें वेदों पर कभी शक नहीं करना चाहिए। ज्ञानी लोग इन्हीं ऋषियों के ध्यान के रास्ते को अपनाते हए इस अनन्त सत्य की खोज आज भी कर रहे हैं।
वेदों में ब्रह्म और ब्रह्मांड के बारे में वास्तविक सच्चाई व्यक्त है। वेद किसी मनुष्य द्वारा रचित नहीं है, बल्कि वेदों में वो सच्चाई है जो स्वयं ब्रह्म से प्रकट हुई है। अत: वेद अनुपुरुषेय या अव्यक्तिक है। वेद सभी धर्मों की जड़ है, क्योंकि सभी धर्म इन्हीं वेदों से निकले हैं। सत्यनिष्ठा सभी धर्मों और ज्ञान की नींव है।
सच्चाई से सभ्यता में नेकी उत्पन्न होती है। वेदों का उद्देश्य है संसार को आध्यात्मिक और बौद्धिक दृष्टि से ऊपर उठाना। वेदों में साम्प्रदायिकता व संकीर्णता बिल्कुल नहीं है। वेदों में वो सिद्धान्त है जो शान्ति व संतोष बनाए रखते हैं। वेदों में ऋषियों के संदेश श्लोकों के रूप में लिखे गए हैं, जिनका सारांश है कि “सर्वलोक: सुखिना भवन्तु।”
वेद सर्वमान्य इसलिए नहीं है कि वे अपुरुषेय हैं, बल्कि इसलिए सर्वमान्य है क्योंकि उसमें विश्वव्यापक गुणों व नैतिक सिद्धान्त जैसे: सत्यनिष्ठा, विश्वव्यापक आपसी प्रेमभाव, करुणाशीलता, कष्टसाधना, त्याग, अहिंसा आदि का समर्थन उपलब्ध है। हिन्दू वेदों को अति पवित्र, परम विश्वसनीय व विश्व पालनहार धार्मिक ग्रन्थ माने गये हैं। वेदों की भाषा इतनी सरल नहीं है कि सामान्य मनुष्य समझ सके। भागवत गीता सभी उपनिषदों का निचोड़ है। ऋषियों ने वेदों के मुख्य सिद्धान्तों पर पुराणों में कहानियों और ऐतिहासिक घटनाओं के रूप में इस तरह प्रकाश डाला है कि साधारण मनुष्य उनको समझ सकता है।
इसके अलावा, युगों-युगों में ईश्वरीय अवतारों और महापुरुषों का जन्म होता रहा है, जिनके द्वारा युगेनुसार आध्यात्मिक गुणों और नैतिक सिद्धान्तों का भावान्तर किया गया और धर्म की स्थापना की गई। “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।” त्रेता युग में भगवान राम ने अवतार लेकर स्वयं के जीवन द्वारा आदर्श राजधर्म, आदर्श पारिवारिक जीवन, आदर्श पतिव्रत धर्म, आदर्श भ्राता धर्म, सर्वोच्च भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा सदाचार की शिक्षा का उदाहरण देकर संसार का कल्याण किया। रामायण के रूप में यह आदर्श ज्ञान हमारे लिए सदा उपलब्ध हैं। इसी तरह द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर गीताशास्त्र के द्वारा समयानुसार संसार के कल्याण हेतु ज्ञान प्रदान किया। गीता सर्वशास्त्रमयी है और शास्त्रों की उत्पत्ति वेदों से हुई।
वेद समुद्र की तरह अति विशाल हैं। सूर्य के तप से जब समुद्र का पानी भाप के रूप में ऊपर जाकर वापस वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आता है तो सभी की आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं। इसी तरह महात्मा लोग जो सत्यनिष्ठा द्वारा वेदों का सार समयानुसार इस तरह प्रदान करते हैं कि साधारण मनुष्य सरलता से समझ सकते हैं। अतः जो वेदों को अच्छी तरह नहीं समझ सकते हैं, उनके लिए इतना काफी है कि वो महात्माओं के उपदेशों का अनुसरण करें।

-- ब्रिगेडियर मोहन लाल (से.नि.)