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Dr. Ashok

अक्षरों से दोस्ती

उम्र भर हमारी जवानी कभी साथ नहीं देती,
अक्षरों की दोस्ती है जो यहाँ खूब साथ देती है।
जिन्दगी बिंदास जीने की चाहत रखने वालों की जिन्दगी के चौराहे पर कभी भी हार नहीं होती है, अक्षरों से दोस्ती करने वालों की खुशियाँ सदियों तक साथ जो देती है।
साठ की दहलीज़ पर कदम रखने के बाद जीवन के हर मोड़ पर अपने बेगाने लगने लगते हैं। धर्मपत्नी का साथ ही अक्सर यकीन बनकर आबाद दिखते हैं। कभी-कभी यहाँ भी फिसलन देखने को मिलती है, परन्तु अपवाद एवं संख्या इस पर संज्ञान लेने की जरूरत नहीं समझता है। अपने समाज में यह एक कल्पना नहीं बल्कि सच्चाई है कि अपने लाल भी मुँह फेर लेते हैं। यहाँ यह कहना जरूरी है कि इस काल में सारथी कोई नहीं बनना चाहता है, बल्कि यहाँ लोग अपनेअपने परिवार में सिमटकर रह जाते हैं।
जिन्दगी के हर उद्यम कर बाल-बच्चों की परवरिश करने वाले माँ-बाप बेगाने से दिखने लगते हैं। बच्चों से इस पर तकरार, यह माँ-बाप का कर्त्तव्य बतलाते हैं और अपना कर्त्तव्य भूल जाते हैं। ऐसे हालात में कुछ तो करना ही होगा। यह एक परीक्षा की घड़ी के समान होती है। बचपन के सारे चेहरे अनजाने से दिखने लगते हैं। जिम्मेदारियों के बोझ तले जवानी तिलतिल कर मरते रहती है, परन्तु बच्चों के अफसाने बुनने के फिराक में माँ-बाप हर मुश्किलों को अपनी आबरू बचाने जैसा मानकर हर खुशियाँ कुर्बान कर देते हैं, परन्तु कोई उम्मीद भी तो है, जिसकी उनकी आँखें तलाशते रहती है।
जब बचपन के अरमानों से ठोकर लगती है, तो तकलीफ होती है, जिसका मरहम कोई नहीं दे सकता है, सिवाय अपने जिन्दगी के टुकड़ों के। शादी क्या हुए कि बच्चों में नई ऊर्जा का खेल शुरू होने लगता है। धर्मपत्नी सबकुछ लगने लगती है। मित्रों के दरवाजे भी घर के सुख-दुःख को देखकर ही सहारा देना प्रारंभ कर देते हैं। इस उम्र में शरीर से कमजोर व लाचार और दृष्टि से भी न्यूनतम प्यार का इज़हार मिलने लगता है, तो फिर इस गम के आशियाने में कुछ तो करना ही पड़ेगा।
हाँ तो बस अपने सूनेपन को दूर करने के लिए मित्रों से भी ज्यादा ताकतवर शख्सियत है किताबें। इन किताबों का साथ ही जिन्दगी के बचे पलों को आबाद कर सकता है, खुशहाल कर सकता है, समय कैसे कट जाएगा यह हम सब सोच भी नहीं सकते हैं। किताबें हमें जिन्दगी जीने का तजुर्बा सिखाती हैं और अपनों के साथ छोड़ देने की स्थिति में जिन्दगी से लड़ने की एक सीख भी। कागज, कलम और किताबें जिन्दगी के ऐसे शागिर्द हैं, जिनसे जिन्दगी में हर कुछ मिल जाएगा, बस आहिस्ता-आहिस्ता हमें इस राह में आने वाले अवरोध से लड़ने की मजबूरी उत्पन्न हो सकती है। बस सुन्दर-सुन्दर सन्देशों से पूर्ण रचनाओं को मूर्त रूप देने की जरूरत है। तो फिर देखिए यह उद्यम क्या गुल खिलाएगा? यहाँ यह कहना अब जरूरी है कि किताबों के हर पन्नों में बिखरे अक्षरों को चुनने की जरूरत है। यह अक्षरों से दोस्ती हमें वह सब कुछ दे सकती हैं जो हमें हमारे बच्चों से मिलनी थी। इसलिए जिन्दगी में खुशियाँ उधार मांगने से अच्छा है कि हम सब अक्षरों से दोस्ती कर लें।

-- डॉ. अशोक, पटना